बुधवार, 16 मई 2012

The Tsarina´s daughter या जार की लड़की

कुछ दिनों पहले रूस के आखिरी ज़ार निकोलस II की दूसरी लड़की तात्याना रोमानोवा की ज़िंदगी के ऊपर आधारित यह बहुचर्चित किताब बाज़ार में आई थी। संयोगवश, मुझे यह दिख गई, और मैंने सोचा कि यह उपन्यास आकर्षक लग रहा है, क्यों न इसे खरीद लिया जाए... अगर यह उबाऊ हो तो ऐतिहासिक पात्रों को जानने समझने का मौका मिलेगा, मगर, यह किताब पहले ही पन्ने से बहुत रोचक निकली। अगर रूसी राजकुमारी तात्याना सामूहिक कत्लेआम जीवित बच निकलती, तो यह उनके जीवन पर आधारित एक रोमांचक कहानी होती, मगर चूंकि यह एक ऐतिहासिक उपन्यास है, तो सारी कहानी फ्लैश बैक के जरिये चलती है। साइबेरिया के नजदीक, टोबोल्स्क शहर में रूसी शाही परिवार की सामूहिक रूप से हत्या कर दी गई थी। बाद में ऐसे कई अफवाह सुनने को मिले, जिसमें तात्याना की बड़ी बहन राजकुमारी आंतासिया के बच निकलने की खबरें सामनें आई थी, लेकिन 1991 ई॰ में डी एन ए टेस्ट के बाद इन सारे अफवाहों को समाप्त कर दिया गया।

कहानी तात्याना शुरू करती है, हालांकि अगर इसे राजकुमारी आंतासिया शुरू करती तो यह और भी रोचक होता तथा सत्यता का पुट इसमें कहीं और ज्यादा होता। कहानी अमरीका से शुरू होती है, जिसमें राजकुमारी तात्याना, वृद्धावस्था में अपने पिता निकोलस के राज दरबार, उसके वैभव और उनमें बसी षडयंत्रों को विस्तार से दिखाती है। वह यह भी बताती है कि कैसे उसकी माँ पादरी रासपुतिन के प्रभाव में थी, जिसके पास कई चमत्कारिक शक्तियाँ थीं। फिर, इस पुस्तक में जापान और रूस के प्रथम युद्ध और उसमें रूस के द्वारा सामना किए गए हार का त्राषद उल्लेख है। साथ ही, मजदूरों के अभाव ग्रस्त जीवन और उनके असंतोषों का भी विवरण है। राजकुमारी के आकर्षण और उनके प्रेम का भी हल्का चित्रण है। बाद में, यह पुस्तक उस उस समय एकदम से घूमती है, जब रूसी शाही परिवार को कत्ल करने के लिए ले जया जाता है। दरिया, मिखाइल जैसे कई पात्र भी डाले गए हैं, जो वास्तविक रूप से  नहीं हैं।

यह उपन्यास यह भी बतलाती है कि पारिवारिक सम्बन्धों के जरिये जर्मन, अंग्रेज़, और रूसी राजपरिवार कैसे एक दूसरे से जुड़े हुये थे, तथा उस समय जर्मनी की बढ़ती ताकत को रोकने कैसे और दूसरे राज परिवार एक जुट हो रहे थे।
संक्षेप में, यह एक रोक पठनीय किताब है। कहीं अगर यह दिख जाए, तो पढ़ने से हिचकिचाएगा नहीं....

मंगलवार, 15 मई 2012

आह आइस क्रीम !

आह आइस क्रीम!

गर्मियों के इस मौसम में हम सब कुछ न कुछ स्वादिष्ट और तरो ताज़ा कर देने वाली चीज़ों को खाना पीना पसंद करते हैं. कुछ लोग चुस्की का सहारा लेते हैं, तो कुछ शरबत का. कई लोग पुदीने का पानी भी पीते हैं, जो मसालेदार होता है. आम का शरबत भी हमें खूब सहारा देता है.  हमारी बदलती जीवन शैली के कारण अब आम का शरबत और पुदीने का पानी तो घर में पीने को मिलता ही नहीं है. गृहणियां अब बच्चों को पैसे देती हैं, ताकि वो कोल्ड ड्रिंक पी सके, और  बाज़ार हमें समझाता है कि "ठंडा मतलब कोका कोला."

यह सिलसिला आज से नहीं है. मुझे याद है कि  जब हम बच्चे थे, तो हमारे घर पर ये सारी चीज़ें बनती थी. मैं ऐसा सोचता हूँ कि मध्यकालीन भारत में शरबत के अतिरिक्त कुलीन वर्गों केपास कुछ लज़ीज़ खाने के लिए था, तो वह थी कुल्फी. आइस क्रीम आधुनिक भारत की चीज़ है.  अंग्रेजों, फ्रांसीसियों और पुर्तगालियों ने इस पदार्थ को भारत में लोकप्रिय बनाया. स्वंत्रता प्राप्ति के बाद जब भारतीय विदेश में गए, तो  कुछ और नए स्वाद भी अपने साथ लेते आये.

कम शब्दों में कहें तो ऐसा कौन है, जो इसे पसंद नहीं करता.  हम जब छोटे थे, तो गोल्डेन खाने के लिए जिद्द करते थे. बाद में, मदर डेरी की दूध से भरी आइस क्रीम खाने लगे. जब जेब में थोड़े और पैसे आये, तो क्वालिटी वाल्स खाने लगे. यूं तो यह कई स्वादों में आता है,  पर ज्यादातर लोगों को वैनिला, स्ट्राबेरी और चाकलेट का स्वाद पसंद है. इतना सब होने के बाद भी यह आम आदमी की पहुँच से दूर है.