मंगलवार, 15 मई 2012

आह आइस क्रीम !

आह आइस क्रीम!

गर्मियों के इस मौसम में हम सब कुछ न कुछ स्वादिष्ट और तरो ताज़ा कर देने वाली चीज़ों को खाना पीना पसंद करते हैं. कुछ लोग चुस्की का सहारा लेते हैं, तो कुछ शरबत का. कई लोग पुदीने का पानी भी पीते हैं, जो मसालेदार होता है. आम का शरबत भी हमें खूब सहारा देता है.  हमारी बदलती जीवन शैली के कारण अब आम का शरबत और पुदीने का पानी तो घर में पीने को मिलता ही नहीं है. गृहणियां अब बच्चों को पैसे देती हैं, ताकि वो कोल्ड ड्रिंक पी सके, और  बाज़ार हमें समझाता है कि "ठंडा मतलब कोका कोला."

यह सिलसिला आज से नहीं है. मुझे याद है कि  जब हम बच्चे थे, तो हमारे घर पर ये सारी चीज़ें बनती थी. मैं ऐसा सोचता हूँ कि मध्यकालीन भारत में शरबत के अतिरिक्त कुलीन वर्गों केपास कुछ लज़ीज़ खाने के लिए था, तो वह थी कुल्फी. आइस क्रीम आधुनिक भारत की चीज़ है.  अंग्रेजों, फ्रांसीसियों और पुर्तगालियों ने इस पदार्थ को भारत में लोकप्रिय बनाया. स्वंत्रता प्राप्ति के बाद जब भारतीय विदेश में गए, तो  कुछ और नए स्वाद भी अपने साथ लेते आये.

कम शब्दों में कहें तो ऐसा कौन है, जो इसे पसंद नहीं करता.  हम जब छोटे थे, तो गोल्डेन खाने के लिए जिद्द करते थे. बाद में, मदर डेरी की दूध से भरी आइस क्रीम खाने लगे. जब जेब में थोड़े और पैसे आये, तो क्वालिटी वाल्स खाने लगे. यूं तो यह कई स्वादों में आता है,  पर ज्यादातर लोगों को वैनिला, स्ट्राबेरी और चाकलेट का स्वाद पसंद है. इतना सब होने के बाद भी यह आम आदमी की पहुँच से दूर है.

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