शनिवार, 19 फ़रवरी 2011

Psycho, मनोविज्ञान पर आधारित एक क्लासिक फिल्म!

Psycho

फिल्म के एक खास पल का दृश्य !
अगर कहीं से किसी कॉपी राइट का उल्लंघन होता है, तो ब्लॉगर
 क्षमा प्रार्थी है  और यह फोटो निकाल दी जाएगी। 
सामान्य रूप से हम हिन्दी फिल्मों के शौकीन अपने हिन्दी सिनेमा से इतर, इधर उधर कम ही तांक झांक करते हैं।  हम यह मान कर चलते हैं कि हमारी फिल्मों का दुनिया में कोई मुक़ाबला नहीं है और भारतीय निर्देशकों का लोहा पूरी दुनिया मानती है। कुछ हद्द तक तो यह बात ठीक है क्योंकि फिल्मों के मामले में हम निश्चित रूप से कई अच्छी फिल्मों का निर्माण करते हैं। यहाँ तक कि अगर हम चोरी भी करते हैं, तो उसे भारतीय परिवेश में ढाल देते हैं। लेकिन, कई ऐसी अविस्मरणीय फिल्में भी हैं, जिन्हें हौलीवुड ने बहुत  तरीके से बनाया है, और सच में चुनिन्दा ऐसी फिल्मों का कोई मुक़ाबला नहीं है। फिल्म इतिहास में ये फिल्में शाश्वत हैं। 

अल्फ्रेड हिचकौक एक महान निर्देशक थे। सस्पेन्स पर आधारित फिल्में बनाने में उनका कोई मुक़ाबला नहीं है। कभी भी आपको अगर इस निर्देशक की  कोई भी फिल्म देखने को मिल जाये तो आप आँखें बंद कर इनकी कोई सी फिल्म पर भरोसा कर सकते हैं। समय समय पर मैं आपको इन फिल्मों के बारे में बताता भी जाऊंगा। आज मैं आपको रोचक फिल्मों की शृंखला में इस फिल्म के बारे में बताऊंगा। 

अपनी शादी की खातिर मारिओन क्रेन अपने ऑफिस से 40,000 अमरीकी डालर की चोरी करती है। रास्ते में भारी बरसात से बचने के लिए उसे एक रात एक सराय में शरण लेनी होती है। वहीं उसकी मुलाकात सराय के मालिक, नॉर्मन बेट्स से होती है। वह इस लड़की को खाना खाने के लिए निमंत्रण देता है। शाम में वह माँ बेटे के बीच में बहस को सुनती है। बहस का मूल मुद्दा नॉर्मन में क्रेन के लिए यौन सम्बन्धों में आकर्षण को लेकर है। बाद में नहाते वक्त मरिओन की हत्या कर दी जाती है। जब नॉर्मन मारिओन की लाश को देखता है, तो वह यह समझता है की उसकी माँ ने इस लड़की की हत्या कर दी है। अपनी माँ को बचाने के लिए, वह लाश को पर्दे में लपेट कर पैसे के साथ कर को एक दलदल में धकेल देता है। लेकिन मूल कहानी यहाँ से शुरू होती है कि मारिओन की हत्या किसने की है। जब हम सच को अपने सामने देखते हैं तो इस फिल्म और इसके निर्देशक की तारीफ किए बगैर नहीं रह सकते। कहानी के रहस्यों को पूरा न खोलते हुए मैं बस इतना ही कहना चाहूँगा कि मारिओन की हत्या दरअसल नॉर्मन ने ही की है, मगर यह पूरा सच नहीं है। 

मूल रूप से रोबर्ट ब्लॉक के उपन्यास Psycho पर आधारित यह फिल्म अपनी कहानी की वजह से एक अति सुंदर फिल्म है। हाँ, कुछ दृश्यों में एक छोटे बच्चे को डर लग सकता है, मगर 13 वर्ष से अधिक के व्यक्तियों के लिए यह एक लाजवाब कृति है। 

हाँ आखिर में एक बात और, फिल्म देख कर आप अपनी टिप्पणियों को देना न भूलिएगा। 

शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

लासारिल्यो दे तोरमेस

लासारिल्यो दे तोरमेस

कई ऐसी साहित्यिक रचनाएँ होती हैं, जो समय के साथ साथ अमर होती जाती  हैं। लासारिल्यो दे तोरमेस की कथा भी उन्हीं अप्रतिम रचनाओं में से एक है। मूल रूप से स्पेनी भाषा में लिखे गए इस उपन्यास/ आत्मकथा/ पत्र  के पाण्डुलिपि और रचनाकल के बारे में तो ठीक ठीक पता नहीं है, मगर इस पुस्तक के तीन संस्करण स्पेन के तीन विभिन्न शहरों में 1554 ई॰ में प्रकाशित हुये और उसके बाद साहित्य में आत्मकथा और पत्राचार शैली तो अस्तित्व में आई ही, कई लोग उपन्यास विधा के जन्म का श्रेय इस रचना को भी देते हैं। 

मध्यकालीन यूरोप में सामान्य तौर पर वीरता, शूरवीरों की कथा, प्रेम कहानियाँ और कुलीनों से संबन्धित विषय पर रचनाएँ गीतिकाव्य में लिखे जाते थे। स्पेन तत्कालीन समय में यूरोप के सर्वाधिक विकसित देश के रूप में अवस्थित था। अगर उसे कोई चुनौती देने वाला था, तो वह पुर्तगाल ही था, जो किसी भी तरह से उसका पिछलग्गू नहीं बनना चाहता था। दोनों के पास अपार संसाधन से भरपूर उपनिवेश थे, ये देश अपने उपनिवेशों के बदौलत बहुत तेज़ी से तरक्की कर रहे थे और साथ में बड़े पैमाने पर ईसाईयत का प्रचार भी कर रहे थे। अपने विशाल उपनिवेशों की वजह से ये देश आर्थिक रूप से बहुत सम्पन्न थे। 

ठीक इसी समय गद्य विधा में एक पतली सी रचना प्रकाशित होती है, जिसमें निम्नस्तरीय आदमी किसी उच्चस्तरीय व्यक्ति को एक पत्र लिख कर अपने में पूरी जानकारी देता है, और इस तरह से पाठक समाज के दबे कुचले लोगों के बारे में जानना शुरू करता है कि दरअसल उसके माता पिता एक धर्मपरिवर्तित ईसाई हैं। पिता की मृत्यु के बाद उसकी माँ एक काले आदमी से संबंध बनाती है, ताकि वह अपने बच्चों की सही तरह से परवरिश कर सके। जब वह थोड़ा बड़ा होता है, तो उसकी माँ उसे घर से निकलते समय उसे नेक बनने की शिक्षा देती है, मगर अंत में वह अपनी नेकी  को तो बरकरार रख पाता है, मगर इस प्रक्रिया में उसे समाज के कई लोगों के सेवक के रूप में कार्य करना पड़ता है। वह ज़िंदगी के कई सबक को सीखता है, और देखता है कि लोग कैसे अपने स्वार्थ के लिए कई तरह के ढोंग रचते है और धर्म का सहारा लेते हैं। अंत में, वह पादरी के एक रखैल से विवाह करता है ताकि आने वाली उसकी ज़िंदगी सुखमय हो सके। ईसाई धर्म के कैथोलिक  वर्ग में पादरियों के लिए यौन संबंध का निषेध है। मूल कथा के साथ अध्यायों के हरेक अध्याय में उसकी ज़िंदगी के एक पक्ष को दिखा गया है, और इस तरह से समाज के एक चेहरे को भी हम देखते हैं। कहानी में मात्र तीन नाम हैं, बाकी पात्रों को उनके पेशे के नाम से पुकारा गया है। ज़िंदगी में उसके भी कुछ सपने हैं, वह भी एक इज्ज़तदार आदमी बनना चाहता है, और इस पूरी प्रक्रिया में अपने ज़िंदगी में आए कई महत्वपूर्ण पड़ावों का तो वह जिक्र करता है, मगर कुछ को वह अधूरा ही छोड़ देता है, और कुछ घटनाओं का वह नाम तक नहीं लेता| अंत मे, उसके अनुसार उसके पास एक सम्मानजनक काम होता है, और एक सम्मानित” पत्नी| पूरी आपबीती आत्मकथातम्क शैली में लिखी गई है|

पुस्तक के प्रकाशन के कुछ वर्षों के अंदर ही स्पेन में इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, मगर प्रतिबंधित होने के बाद भी यह खूब पढ़ी गई और इसका कई विदेशी भाषाओं जैसे, अङ्ग्रेज़ी, जर्मन, इतालवी, फ्रांसीसी, डच भाषाओं में 100 वर्षों के अंदर ही इसका अनुवाद हो गया। इस पुस्तक के साथ ही पिकारेस्क विधा का जन्म हुआ । अङ्ग्रेज़ी में चार्ल्स डिकेंस के मशहूर उपन्यास ओलिवर ट्विस्ट (Oliver Twist) पर भी इस उपन्यास का प्रभाव साफ झलकता है।  गत वर्ष हिन्दी भाषा में इसका अनुवाद स्पेन के साहित्य एवं संस्कृति मंत्रालय  के सहयोग से हुआ है। 

लासारिल्यो दे तोरमेस की कथाउसके सौभाग्य और उसकी विपत्तियाँ इस पुस्तक के हिन्दी अनुवाद का शीर्षक है। चिरस्थायी महान रचनाओं में से एक इसे पढ़ते वक्त आप हँसते हँसते लोट पोट बिना नहीं रह सकेंगे।