बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

उड़ीसा सरकार का समर्पण

उड़ीसा सरकार का समर्पण

आज सुबह जब मैंने दैनिक जागरण का वेब पेज खोला, तो उसमें अपहृत जिलाधिकारी आर वी कृष्ण और कनिष्ठ अभियंता पबित्र मांझी की रिहाई की खबर मुझे मिली क्योंकि उड़ीसा सरकार ने उनकी अधिकांश मांगे मांग ली है। यह खबर पढ़कर अन्य देशवाशियों की तरह ही मेरा मन दुख और क्षोभ से भर उठा। 

मेरे मन में ढेर सारी बातें आईं। मैंने सोचा कि जब हम अपने ही जमीन पर इस तरह का आत्मसमर्पण कर सकते हैं, तो जब हमें बंग्लादेश आँखें दिखाता है, तो क्या गलत करता  है ? पाकिस्तान और चीन तो बड़े खतरे हैं, उनसे हम पार भी नहीं पा सकते हैं। मेरे मन में कलाम का विजन 2020 भी आया, जिसमें वे भारत को 2020 में सुपर पावर बनाने की बात करते हैं। अगर इस तरह से हम आतंकवादियों के सामने आत्म समर्पण करते रहें तो उनके हौसलों को और पर लगते रहेंगे। 

कांधार कांड को हम भूलें नहीं है। यह हमारे स्वामिभान पर एक बड़ा हमला था। कई बार एक देश के रूप में हमने  यह अंदाज़ा लगाने की कोशिश भी की है, अगर हम आतंकवादियों को नहीं छोडते तो क्या होता? फिर हमने कुछ नियम कायदे भी बनाए कि अपहरण जैसी परिस्थिति में हम क्या करेंगे। हमने इतनी काबिल फौज और पुलिस भी खड़ी की है, जो हमें बाहरी और अंदरूनी दुश्मनों से रक्षा करने में समर्थ है। फिर संसद पर हमला होता है, और आज अखबार में पढ़ने को मिलता है कि अफजल गुरु की जीवन दान की याचिका राष्ट्रपति के पास भेजी ही नहीं है, ताकि हम उसे बैठा कर खिलाते रहें। कसाब के मामले में भी हमें समय लगेगा, तो क्या इससे देश के दुश्मन और मजबूत नहीं हो रहें? 

हाँ इस श्रेणी के गद्दारों में मैं एक और वर्ग का नाम लेना चाहूँगा, जो माओवादियों के खामोश समर्थक है, और जो शहरों में रहकर उनके लिए एक वैचारिक जमीन तैयार करते हैं। अरुंधति रॉय तो अब देश विरोधी बयान ही देने का काम करती हैं। ये वही लोग है, जिन्हें देश नहीं नज़र आता। 

कौन कमजोर है, न्यायपालिका या नेता? मुझे नहीं लगता कि हमारे बहादुर सिपाही कहीं से कमजोर हैं, क्योंकि नारायणपुर में  घात लगा कर उनपर बेरहमी से हत्या कर दी जाती है और हमारे नेता बस यूंही देखते ही रह जाते हैं। कहीं से कोई कार्रवाई नहीं। आज हम एक अधिकारी को बचाने के लिए आतंकवादियों से सौदा करते हैं, तो कल ये किसी नेता का अपहरण करेंगे तो हम किस स्तर तक नीचे गिरेंगे? यह एक सोचने लायक विषय है। सिर्फ देशभक्ति के नारे लगाकर देश नहीं मजबूत बनता है। 

सच में हम कहीं से भी मजबूत नहीं है। अपने घर में भी हम सुरक्षित नहीं.... 
ये हालात कब बदलेंगे? समस्याओं की तरह प्रश्न बहुत है, समाधान नहीं। 


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